Guruvani also defines the conduct of true Sikh like this:
सेव कीती संतोखीईं जिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥
ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥
ओन्ही दुनीआ तोड़े बंधना अंनु पाणी थोड़ा खाइआ ॥
तूं बखसीसी अगला नित देवहि चड़हि सवाइआ ॥
वडिआई वडा पाइआ ॥७॥
संतोखीई - संतोष रखनेवालों ने (Ones having patience) ; सुक्रित - नेक कमाई (Right livelihood); बख्सीसी – बख्शीशें (Favours) ; अगला - बहुत ज्यादा (Too much) |
ਜਿਨ੍ਹ੍ਹੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਧਿਆਇਆ ॥.ਸੇਵ ਕੀਤੀ ਸੰਤੋਖੀਈ
ਓਨ੍ਹ੍ਹੀ ਮੰਦੈ ਪੈਰੁ ਨ ਰਖਿਓ ਕਰਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਧਰਮੁ ਕਮਾਇਆ ॥
ਓਨ੍ਹ੍ਹੀ ਦੁਨੀਆ ਤੋੜੇ ਬੰਧਨਾ ਅੰਨੁ ਪਾਣੀ ਥੋੜਾ ਖਾਇਆ ॥
ਤੂੰ ਬਖਸੀਸੀ ਅਗਲਾ ਨਿਤ ਦੇਵਹਿ ਚੜਹਿ ਸਵਾਇਆ ॥
ਵਡਿਆਈ ਵਡਾ ਪਾਇਆ ॥੭॥ (SGGS 466-467)
Those who serve are content. They meditate on the Truest of the True. They do not place their feet in sin, but do good deeds and live righteously in Dharma. They burn away the bonds of the world, and eat a simple diet of grain and water. You are the Great Forgiver; You give continually, more and more each day. By His greatness, the Great Lord is obtained. ||7||
प्रभु के भक्तों ने सब्र, धीरज और संतोष का गुण धारण करते हुए, उस सच्चे की भक्ति की और राम नाम का सुमिरन किया | वे गलत रास्ते पर नहीं गये | उन्होनें हक-हलाल की कमाई और शुभ कर्म रखते हुए, अर्थात परमार्थ के मार्ग पर चलने का यत्न किया | उन्होनें खान-पान की और ध्यान कम दिया और आत्मा को संसार के साथ बांधनेवाले बंधन तोड़ लिए | हे प्रभु ! तू बख्शनहार है ! तू एक बार बख्शीश करके रुक नहीं जाता | तेरी बख्शीश हर वक्त जारी रहती है और दिन प्रतिदिन बढती जाती है | तेरे संतोषी भक्त तेरी दया से तेरी भक्ति करते हुए तेरे साथ मिलाप कर लेते हैं |
सेव कीती संतोखीईं जिन्ही सचो सचु धिआइआ ॥
In this pauri (stanza) Guru Sahib is describing the conduct of a true Sikh (seeker) who has surrendered himself in the shelter of Satguru and is meditating over the Ram Naam (Holy Word). He explains that real sikh (seeker) is living example of tolerance, patience and satisfaction and does not loses believe in his Guru even in the period of adversities. He accepts what is showered upon him by the grace of Almighty and remains satisfied in that and remains in the devotion of Him and His Holy Name (Satnam).
इस पौड़ी में गुरु साहिब सतगुरु की शरण द्वारा नाम का अभ्यास करनेवाले सिख (शिष्य) की रहनी बयान कर रहे हैं | गुरु साहिब समझा रहे हैं कि सच्चा सिख संतोष, सब्र और धीरज की प्रत्यक्ष मिसाल होता है और कैसी भी मुश्किल आयें उसका गुरु में विश्वास अड़ोलता नहीं है | जो कुछ भी मालिक उनको अपनी रहमत द्वारा बख्शता है, वे उसी में संतुष्ट रहते हुए उसकी भक्ति और नाम की आराधना में लगे रहते हैं |
ओन्ही मंदै पैरु न रखिओ करि सुक्रितु धरमु कमाइआ ॥
In this line, the conduct and living style of devotee of God - a very important aspect of spirituality – has been stresses upon. The devotee of Lord remains in the will of his Guru and surrenders his mind to Him. He tried to avoid committing sinful acts so that he does not gets ashamed in the court of Lord. The word ‘Sukrit’ is Guruvani has been used to mean earning by rightful means and pious acts and also for practise of Holy Word (Satnam). Wealth earned by corruption, cheating, unlawful means is not acceptable in the kingdom of Satguru and one has to pay for it. If you have two pieces of bread (Roti) with you but need only one then you should share it with the people (Sadh Sangat). God is pleased by your act. Guru Arjun Dev says:
इस लाइन में मालिक के भक्त की करनी और रहनी के बहुत ही महत्वपूर्ण पक्ष पर प्रकाश डाला गया है | प्रभु का भक्त गुरु के कहने में चलता है और मन को गुरु को समर्पित कर देता है | वह सबसे पहले पाप-कर्मों से बचने की कोशिश करता है जिससे उसे मालिक के दरबार में शर्मिंदा न होना पड़े | वाणी में 'सुक्रित' पद नेक यानी हक-हलाल की कमाई तथा शुभ कर्म के लिए भी प्रयोग किया गया है और नाम के अभ्यास के लिए भी | रिश्वतखोरी, ठगी, बेईमानी से कमाया धन गुरु के दरबार में स्वीकार नहीं, उसका हिसाब देना पड़ेगा | अगर अपने पास दो रोटी हैं और भूख सिर्फ एक की है तो उसे साध-संगत की सेवा में देना चाहिए | मालिक उससे से प्रसन्न होता है | गुरु अर्जुन देव जी फरमाते हैं:
दिनु राति कमाइअड़ो सो आइओ माथै ॥
जिसु पासि लुकाइदड़ो सो वेखी साथै ॥
संगि देखै करणहारा काइ पापु कमाईऐ ॥
सुक्रितु कीजै नामु लीजै नरकि मूलि न जाईऐ ॥
ਦਿਨੁ ਰਾਤਿ ਕਮਾਇਅੜੋ ਸੋ ਆਇਓ ਮਾਥੈ ॥
ਜਿਸੁ ਪਾਸਿ ਲੁਕਾਇਦੜੋ ਸੋ ਵੇਖੀ ਸਾਥੈ ॥
ਸੰਗਿ ਦੇਖੈ ਕਰਣਹਾਰਾ ਕਾਇ ਪਾਪੁ ਕਮਾਈਐ ॥
ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕੀਜੈ ਨਾਮੁ ਲੀਜੈ ਨਰਕਿ ਮੂਲਿ ਨ ਜਾਈਐ ॥ (SGGS 461)
Those actions you perform, day and night, are recorded upon your forehead. And the One, from whom you hide these actions - He sees them, and is always with you. The Creator Lord is with you; He sees you, so why commit sins? So perform good deeds, and chant the Naam, the Name of the Lord; you shall never have to go to hell. Guru Arjun Dev Ji says elsewhere in Guruvani:
जो कर्म आप दिन रात करते हो, वो आपके ललाट पर अंकित हो जाते हैं और चित्रगुप्त की बही में लिखे जाते हैं | और जिस परमेश्वर से तुम इन कर्मों को छिपाना चाहते हो वो तुम्हारी रग- रग से वाकिफ है क्योंकि तुम्हारे अंतर में बसा है | वो हर समय तुम्हारे साथ है और तुम्हारे हर कृत्य को देख रहा है, फिर तुम क्यों पाप करते हो ? शुभ कर्म करो और मालिक का नाम का सुमिरन करो और फिर तुम कभी नरक में नहीं जाओगे | गुरु अर्जुन देव जी एक अन्य प्रसंग में कहते हैं:
संतहु राम नामि निसतरीऐ ॥
ऊठत बैठत हरि हरि धिआईऐ अनदिनु सुक्रितु करीऐ ॥१॥ रहाउ ॥
संत का मारगु धरम की पउड़ी को वडभागी पाए ॥
कोटि जनम के किलबिख नासे हरि चरणी चितु लाए ॥२॥
ਸੰਤਹੁ ਰਾਮ ਨਾਮਿ ਨਿਸਤਰੀਐ ॥
ਊਠਤ ਬੈਠਤ ਹਰਿ ਹਰਿ ਧਿਆਈਐ ਅਨਦਿਨੁ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕਰੀਐ ॥੧॥ ਰਹਾਉ ॥
ਸੰਤ ਕਾ ਮਾਰਗੁ ਧਰਮ ਕੀ ਪਉੜੀ ਕੋ ਵਡਭਾਗੀ ਪਾਏ ॥
ਕੋਟਿ ਜਨਮ ਕੇ ਕਿਲਬਿਖ ਨਾਸੇ ਹਰਿ ਚਰਣੀ ਚਿਤੁ ਲਾਏ ॥੨॥ (SGGS 622)
O Saints, salvation comes from the Lord's Name. While standing up and sitting down, meditate on the Lord's Name. Night and day, do good deeds. The way of the Saints is the ladder of righteous living, found only by great good fortune. The sins of millions of incarnations are washed away, by focusing your consciousness on the Lord's feet. Guru Ramdas Ji also calls remembrance (Sumiran) of Lord as good action (Sukrit):
ओ संतो ! परमात्मा के नाम का सुमिरन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है | उठते- बैठे मालिक के नाम का सुमिरन करो | दिन रात शुभ कर्म करो | संतो का मार्ग सही रहनी का मार्ग है जो बड़े नसीब वालों को मिलता है | असंख्य जन्मों के पाप कर्म मालिक के चरणों पर ध्यान लगाने से नष्ट हो जाते है | जैसे एक आग की चिंगारी सूखे घास को बड़े ढेर को क्षण भर में स्वाह कर देती है | गुरु रामदास जी ने भी रामनाम के सुमिरन को उत्तम सुक्रित कहा है:
जगि सुक्रितु कीरति नामु है मेरी जिंदुड़ीए हरि कीरति हरि मनि धारे राम ॥
हरि हरि नामु पवितु है मेरी जिंदुड़ीए जपि हरि हरि नामु उधारे राम ॥
सभ किलविख पाप दुख कटिआ मेरी जिंदुड़ीए मलु गुरमुखि नामि उतारे राम ॥
ਜਗਿ ਸੁਕ੍ਰਿਤੁ ਕੀਰਤਿ ਨਾਮੁ ਹੈ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੁੜੀਏ ਹਰਿ ਕੀਰਤਿ ਹਰਿ ਮਨਿ ਧਾਰੇ ਰਾਮ ॥
ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਪਵਿਤੁ ਹੈ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੁੜੀਏ ਜਪਿ ਹਰਿ ਹਰਿ ਨਾਮੁ ਉਧਾਰੇ ਰਾਮ ॥
ਸਭ ਕਿਲਵਿਖ ਪਾਪ ਦੁਖ ਕਟਿਆ ਮੇਰੀ ਜਿੰਦੁੜੀਏ ਮਲੁ ਗੁਰਮੁਖਿ ਨਾਮਿ ਉਤਾਰੇ ਰਾਮ ॥ (SGGS 539)
In this world, the best occupation is to sing the Praises of the Naam, O my soul. Singing the Praises of the Lord, the Lord is enshrined in the mind. The Name of the Lord, Har, Har, is immaculate and pure, O my soul. Chanting the Name of the Lord, Har, Har, one is saved. All sins and errors are erased, O my soul; with the Naam, the Gurmukh washes off this filth.
इस संसार में सबसे अच्छा कार्य राम नाम का सुमिरन है | ओ मेरे मन ! राम नाम को जप | राम नाम को जपने से मन में राम बस जाएगा और तू राममय हो जाएगा | हरी के नाम जपने से जीव काल की मार से बच जाता है | सारे पाप कर्म और गलतियाँ मिट जाती है | हरी का नाम अनुपम और निर्मल है जिससे से जन्म-जन्म की मल साफ़ हो जाती है |
ओन्ही दुनीआ तोड़े बंधना अंनु पाणी थोड़ा खाइआ ॥
The devotion towards God and the love towards God helps in communion with God. The attachment towards the world and its objects binds one with this world. The living style of devotee is always different from materialistic people. They try to break the shackles of attachments with this world rather than increasing the bondages of illusion with this world. Guru Nanak dev Ji indicates this fact in the sixteenth stanza of “Vaan of Maajh”:
परमेश्वर का प्रेम और प्रभु की भक्ति, प्रभु से विसाल करने में मददगार साबित होती है | दुनिया का मोह जीव को संसार के साथ बाँधता है | प्रभु के आशिको की रहनी आम इंसानों से कुछ अलग होती है | वे माया के बंधन बढाने के बजाय तोड़ने का यत्न करते हैं | गुरु नानक देव जी 'वार माझ की' की सोलहवी पौड़ी में संकेत करते हैं :
भगत आपे मेलिअनु जिनी सचो सचु कमाइआ ॥
सैसारी आपि खुआइअनु जिनी कूड़ु बोलि बोलि बिखु खाइआ ॥
चलण सार न जाणनी कामु करोधु विसु वधाइआ ॥
भगत करनि हरि चाकरी जिनी अनदिनु नामु धिआइआ ॥
दासनि दास होइ कै जिनी विचहु आपु गवाइआ ॥
ਭਗਤ ਆਪੇ ਮੇਲਿਅਨੁ ਜਿਨੀ ਸਚੋ ਸਚੁ ਕਮਾਇਆ ॥
ਸੈਸਾਰੀ ਆਪਿ ਖੁਆਇਅਨੁ ਜਿਨੀ ਕੂੜੁ ਬੋਲਿ ਬੋਲਿ ਬਿਖੁ ਖਾਇਆ ॥
ਚਲਣ ਸਾਰ ਨ ਜਾਣਨੀ ਕਾਮੁ ਕਰੋਧੁ ਵਿਸੁ ਵਧਾਇਆ ॥
ਭਗਤ ਕਰਨਿ ਹਰਿ ਚਾਕਰੀ ਜਿਨੀ ਅਨਦਿਨੁ ਨਾਮੁ ਧਿਆਇਆ ॥
ਦਾਸਨਿ ਦਾਸ ਹੋਇ ਕੈ ਜਿਨੀ ਵਿਚਹੁ ਆਪੁ ਗਵਾਇਆ ॥ (SGGS 145)
He blends His devotees with Himself; they practice Truth, and only Truth. The Lord Himself leads the people of the world astray; they tell lies, and by telling lies, they eat poison. They do not recognize the ultimate reality that we all must go; they continue to cultivate the poisons of sexual desire and anger. The devotees serve the Lord; night and day, they meditate on the Naam. Becoming the slaves of the Lord's slaves, they eradicate selfishness and conceit from within. Guru Govind Singh also says:
परमात्मा अपने भक्तों को अपने में ज़ज्ब (लीन) कर लेता है और वे सिर्फ सत्य को ही मानते और अभ्यास करते हैं | परमात्मा में हुक्म से ही मनमुख इस मायामय दुनियाँ में भटकते हैं और झूठ बोलते हैं और मांस, मदिरा आदि विषय-विकारों के ज़हर में लिप्त रहते हैं | वे परम सत्य को नकारते हैं और काम, क्रोध के विष का पान करते हैं | प्रभु के भक्त नम्रतापूर्वक प्रभु की भक्ति करते हैं | वे विषय-विकारों, इन्द्रियों के भोगो से दूर रहते हुए प्रभु के नाम के साथ लिव जोड़कर रखते हैं | संसार के लोग पेट भरकर खाना खाकर ऊपर-नीचें सांस लेते हैं और खर्राटें मार कर सोते हैं जबकि हरी के भक्त भक्ति करने के लिए कम भोजन करते हैं और थोड़ी नींद में संतोष करते हैं | गुरु गोविन्द सिंह जी भी कहते हैं:
अलप अहार सुलाप सी निंद्रा दया छिमा तन प्रीति ॥
सील संतोख सदा निरबाहिबो ह्वैबो त्रिगुण अतीति ॥
काम क्रोध हंकार लोभ हठ मोह न मन सो लयावै ॥
तब ही आतम तत को दरसे परम पुरख कह पावै ॥
ਅਲਪ ਅਹਾਰ ਸੁਲਾਪ ਸੀ ਨਿੰਦ੍ਰਾ ਦਯਾ ਛਿਮਾ ਤਨ ਪ੍ਰੀਤਿ ॥
ਸੀਲ ਸੰਤੋਖ ਸਦਾ ਨਿਰਬਾਹਿਬੋ ਹ੍ਵੈਬੋ ਤ੍ਰਿਗੁਣ ਅਤੀਤਿ ॥੨॥
ਕਾਮ ਕ੍ਰੋਧ ਹੰਕਾਰ ਲੋਭ ਹਠ ਮੋਹ ਨ ਮਨ ਸੋ ਲਯਾਵੈ ॥
ਤਬ ਹੀ ਆਤਮ ਤਤ ਕੋ ਦਰਸੇ ਪਰਮ ਪੁਰਖ ਕਹ ਪਾਵੈ ॥੩॥ (Dasam Granth Sainchi 2, 669-70)
Eat less and sleep less, cherish mercy and forgiveness; Practise gentleness and contentment and remain free from three modes. Keep your mind unattached from lust, anger, greed, insistence and infatuation, Then you will visualize the supreme essence and realise the supreme Purusha.
गुरु साहिब फरमाते हैं कि जो भक्त कम खाता है, कम सोता है और ह्रदय में संयम, क्षमा, दया और संतोष धारण करता है, वह तीन गुणों (सत, रज और तम) से ऊपर उठकर चौथे पद का अधिकारी बन जाता है |