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Purity

Archived_Member5

(previously jeetijohal, account deactivated at her
Mar 13, 2006
388
76
London, UK
Virtue, honesty, and peace are attributes of love. Love is a great and powerful cleanser, it relaxes mind and body, being intolerant of vice and impurity excretes any and all such pollutants liable to cause harmony disrupt peace and harmony in mind and body if the being is mentally strong the body and mind become as a fortress.

The blessed are fortuned to do seva to not only cleanse karma but for the pure joy of maintaining ones family, home, business, community and being able to enlighten, assist and help others if only with a kind word. Seva in the gurdwara is the cleansing, cooking and assisting with others made more joyful for the communing. Any task undertaken with love is hardly considered service, seva or penance.

One and I being of them have no sins, our lives and past being an open book for our enemies to peruse, but find great honour and community bonding whether scrubbing pots in the gurdwara kitchen, making roti’s or teaching people reasoning to master their own minds. Love is always the key, where a person is driven by greed, ambition or personal gain it rarely bears the fruits as when Love of the Supreme Spirit found in his creation. Without love seva is a burden, a toil an essential task made heavier for the resentment one is required rather than inspired.

Seva is spiritually cleansing and uplifting, the langar hall where all great and small alike become as one in kinship and humanity.
 

ravneet_sb

Writer
SPNer
Nov 5, 2010
866
326
52
Sat Sri Akaal,

Focus is in Shabad Sutak and Patak,

With the crona virus pandemic, the words are gaining dominance, as quarantines from infections.

Old beliefs are making sound claims as the appropriate scientific ways of social ways.

There are so many ways beliefs are emerging, due to fears and controls.

Perceptive of Shabad Sutak and Patak as quarantine mechanisms practiced for infection control sounds high as a scientific practice.

But uniformity of laws and practices, brings more insight for infections and quarantines.

Positive scientific practices how it has lead to negative ritualistic practices alienating society and the inner quarantines of Mind routines, if one really believes in infections and quarantines, underating of inner awareness is the way to spirit development.

Waheguru Ji Ka Khlasa
Waheguru Ji Ki Fateh
 

ravneet_sb

Writer
SPNer
Nov 5, 2010
866
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SUTAK Perceptive

*हम तो आदिकाल से क्वारेंटाईन करते हैं, तुम्हे अब समझ आया*
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*त्वरितटिप्पणी*
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*आज जब सिर पर घूमता एक वायरस हमारी मौत बनकर बैठ गया तब हम समझें कि हमें क्वारेंटाईन होना चाहिये, मतलब हमें ‘‘सूतक’’ से बचना चाहिये। यह वही ‘सूतक’ है जिसका भारतीय संस्कृति में आदिकाल से पालन किया जा रहा है। जबकि विदेशी संस्कृति के नादान लोग हमारे इसी ‘सूतक’ को समझ नहीं पा रहे थे। वो जानवरों की तरह आपस में चिपकने को उतावले थे ? वो समझ ही नहीं रहे थे कि मृतक के शव में भी दूषित जीवाणु होते हैं ? हाथ मिलाने से भी जीवाणुओं का आदान-प्रदान होता है ? और जब हम समझाते थे तो वो हमें जाहिल बताने पर उतारु हो जाते । हम शवों को जलाकर नहाते रहे और वो नहाने से बचते रहे और हमें कहते रहे कि हम गलत हैं और आज आपको कोरोना का भय यह सब समझा रहा है।*

👉 *हमारे यहॉ बच्चे का जन्म होता है तो जन्म ‘‘सूतक’’ लागू करके मॉ-बेटे को अलग कमरे में रखते हैं, महिने भर तक, मतलब क्वारेंटाईन करते हैं।*

👉 हमारे यहॉ कोई मृत्यु होने पर परिवार सूतक में रहता है लगभग 12 दिन तक सबसे अलग, मंदिर में पूजा-पाठ भी नहीं। सूतक के घरों का पानी भी नहीं पिया जाता।

👉 *हमारे यहॉ शव का दाह संस्कार करते है, जो लोग अंतिमयात्रा में जाते हैं उन्हे सबको सूतक लगती है, वह अपने घर जाने के पहले नहाते हैं, फिर घर में प्रवेश मिलता है।*

👉 हम मल विसर्जन करते हैं तो कम से कम 3 बार साबुन से हाथ धोते हैं, तब शुद्ध होते हैं तब तक क्वारेंटाईन रहते हैं। बल्कि मलविसर्जन के बाद नहाते हैं तब शुद्ध मानते हैं।

👉 *हम जिस व्यक्ति की मृत्यु होती है उसके उपयोग किये सारे रजाई-गद्दे चादर तक ‘‘सूतक’’ मानकर बाहर फेंक देते हैं।*

👉 हमने सदैव होम हवन किया, समझाया कि इससे वातावरण शुद्ध होता है, आज विश्व समझ रहा है, हमने वातावरण शुद्ध करने के लिये घी और अन्य हवन सामग्री का उपयोग किया।

👉 *हमने आरती को कपूर से जोड़ा, हर दिन कपूर जलाने का महत्व समझाया ताकि घर के जीवाणु मर सकें।*

👉 हमने वातावरण को शुद्ध करने के लिये मंदिरों में शंखनाद किये,

👉 *हमने मंदिरों में बड़ी-बड़ी घंटियॉ लगाई जिनकी ध्वनि आवर्तन से अनंत सूक्ष्म जीव स्वयं नष्ट हो जाते हैं।*

👉 हमने भोजन की शुद्धता को महत्व दिया और उन्होने मांस भक्षण किया।

👉 *हमने भोजन करने के पहले अच्छी तरह हाथ धोये, और उन्होने चम्मच का सहारा लिया।*

👉 हमने घर में पैर धोकर अंदर जाने को महत्व दिया

👉 *हम थे जो सुबह से पानी से नहाते हैं, कभी-कभी हल्दी या नीम डालते थे और वो कई दिन नहाते ही नहीं*

👉 हमने मेले लगा दिये कुंभ और सिंहस्थ के सिर्फ शुद्ध जल से स्नान करने के लिये।

👉 *हमने अमावस्या पर नदियों में स्नान किया, शुद्धता के लिये ताकि कोई भी सूतक हो तो दूर हो जाये।*

👉 हमने बीमार व्यक्तियों को नीम से नहलाया ।

👉 *हमने भोजन में हल्दी को अनिवार्य कर दिया, और वो अब हल्दी पर सर्च कर रहे हैं।*

👉 हम चन्द्र और सूर्यग्रहण की सूतक मान रहे हैं, ग्रहण में भोजन नहीं कर रहे और वो इसे अब मेडिकली प्रमाणित कर रहे हैं।

👉 *हम थे जो किसी को भी छूने से बचते थे, हाथ नहीं लगाते थे और वो चिपकते रहे।*
👉 हम थे जिन्होने दूर से हाथ जोडक़र अभिवादन को महत्व दिया और वो हाथ मिलाते रहे।

👉 *हम तो उत्सव भी मनाते हैं तो मंदिरों में जाकर, सुन्दरकाण्ड का पाठ करके, धूप-दीप हवन करके वातावरण को शुद्ध करके और वो रातभर शराब पी-पीकर।*

👉 हमने होली जलाई कपूर, पान का पत्ता, लोंग, गोबर के उपले और हविष्य सामग्री सब कुछ सिर्फ वातावरण को शुद्ध करने के लिये।

👉 *हम नववर्ष व नवरात्री मनायेंगे, 9 दिन घरों-घर आहूतियॉ छोड़ी जायेंगी, वातावरण की शुद्धी के लिये।*

👉 हम देवी पूजन के नाम पर घर में साफ-सफाई करेंगे और घर को जीवाणुओं से क्वरेंटाईन करेंगे।

👉 *हमनें गोबर को महत्व दिया, हर जगह लीपा और हजारों जीवाणुओं को नष्ट करते रहे, वो इससे घृणा करते रहे*

👉 *हम हैं जो दीपावली पर घर के कोने-कोने को साफ करते हैं, चूना पोतकर जीवाणुओं को नष्ट करते हैं, पूरे सलीके से विषाणु मुक्त घर बनाते हैं और आपके यहॉ कई सालों तक पुताई भी नहीं होती।*

👉 अरे हम तो हर दिन कपड़े भी धोकर पहनते हैं और अन्य देशो में तो एक ही कपड़े सप्ताह भर तक पहन लिये जाते हैं।

👉 *हम अतिसूक्ष्म विज्ञान को समझते हैं आत्मसात करते हैं और वो सिर्फ कोरोना के भय में समझने को तैयार हुए।*

👉 हम उन जीवाणुओं को भी महत्व देते हैं जो हमारे शरीर पर सूक्ष्म प्रभाव डालते हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ हम ऐसी देव संस्कृति में जन्में हैं जहॉ ‘‘सूतक’’ याने क्वारेंटाईन का महत्व है। यह हमारी जीवन शैली हैं,

👉 *हम जाहिल, दकियानूसी, गंवार नहीं*
👉 *हम सुसंस्कृत, समझदार, अतिविकसित महान संस्कृति को मानने वाले हैं। आज हमें गर्व होना चाहिऐ कि पूरा विश्व हमारी संस्कृति को सम्मान से देख रहा है, वो अभिवादन के लिये हाथ जोड़ रहा है, वो शव जला रहा है, वो हमारा अनुसरण कर रहा है।* 👌👌👌

हमें भी भारतीय संस्कृति के महत्व को, उनकी बारीकियों को और अच्छे से समझने की आवश्यकता है क्योंकि यही जीवन शैली सर्वोत्तम, सर्वश्रेष्ठ और सबसे उन्नत हैं,
*गर्व से कहिये हम सबसे उन्नत हैं।* 👌👌


✍✍✍
 

ravneet_sb

Writer
SPNer
Nov 5, 2010
866
326
52
Sat Sri Akaal,

ਜੇ ਕਰਿ ਸੂਤਕੁ ਮੰਨੀਐ ਸਭ ਤੈ ਸੂਤਕੁ ਹੋਇ ॥जे करि सूतकु मंनीऐ सभ तै सूतकु होइ ॥

If one is aware of infectious and quarantine,

And all this cause infection, and one shall quarantine...

But fact is one can not isolate, it is false intellact, one is daily using nature for its needs, isolation is not feasible.

It is false to realise it as quarantine.

Focus is for infected thoughts that one stores in Mind and how to quarantine. Or isolate own mind from such thoughts.

Waheguru Ji Ka Khalsa
Waheguru Ji Ki Fateh
 

ravneet_sb

Writer
SPNer
Nov 5, 2010
866
326
52
Sat Sri Akaal,

Guru Nanak, Unveils doubts on infections and quarantine. What is possible and not possible but false illusion of human intelligence.

Its obvious one can not physical quarantine for ones daily needs. It is false intellact. O Bhrahmin (Intellactuals and Researchers) doing research on source informations, for external physical developments,
get the internal awareness.

Sensual Infections which needs quarantine are

1. With tongue when one speaks negativity
2. With eyes when on see others beauty
3. With ears when one listens slanders of other
4. With tastes when one makes corruption
5. With touch when one consumes others wealth.

How the MIND STORES, from which thought expression and action appears, which has infected society will one quarantine.

How intellact can serve, and what is the use of intellact, without human welfare and service.

Branhmin (Intellactuals receiving all services for there basic needs from society, failed to do welfare of service providers, by way of false ignorant claims)

COVID 19 there is a lock down, for daily needs, with no policy and implementation for quarantine vegetable vendors, sweepers, milk providers are serving. how they serve without fear.

There is bar on daily wagers, by self sustainable intellactuals, who have no land resource, is solely depending on service provided. How the life sustains, they are living with grace of Nature. May TRUTH of nature makes them strong and make them learn during these times.

Waheguru Ji Ka Khlasa
Waheguru ji Ki Fateh
 
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